किसान 62 दिनों से शांतिपूर्वक बॉर्डर पर ठंड में बैठे थे,80 के करीब किसान शहीद हो चुके है।सरकार से वार्ता टूट गई और कृषि मंत्री ने कह दिया कि आगे विज्ञान भवन खाली नहीं है।
यह सरकार की नाकामी व नक्कारापन की पराकाष्ठा रही जिसका परिणाम आज दिल्ली में सामने आया।किसानों ने किसी भी पुलिस के जवान के साथ कोई बदतमीजी नहीं की है।कानून व्यवस्था न संभाल पाने के कारण गृहमंत्री से इस्तीफा मांगने के बजाय उल्टा किसानों को बदनाम करने में लग गए।
मरोड़े लगने वालों का कोई इलाज नहीं, तिरंगे वाले पोल को छुआ तक नहीं गया है। खाली पड़े मैदान में लगे पोल पर निशान साहिब और किसानी झंडा लगा है।बाकी जिनको दस्त की बीमारी है ,उनका इलाज मुश्किल है
लानत है ऐसी मीडिया और आईटी सेल पर जिन्होंने लाल किले जैसी जगह को भी झूठ के लबादे में लपेटकर पेश किया
संघी सेल की दो चार भड़काऊ पोस्ट देखकर भावुक होने वाले नौजवानों , यह इम्तिहान का समय है जब तुम्हें दिखाना है कि तुम अपनी कौम पर कितना भरोसा करते हो!तुम्हारा आपसी तालमेल ही आंदोलन को सफलता तक लेकर जाएगा।
झंडा कोई मुद्दा नहीं है।संघी ट्रोला हवा बना रहा है व गोदी मीडिया भड़का रहा है।तिरंगा व संविधान की प्रतियां जलाने वाले लोगों से प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं है।